महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा: दोस्तों भारत भूमि की इस महान धरती पर सभी युगों में अनेक महायोद्धा हुए हैं, चाहे वह त्रेता युग में श्रीराम, वाली, सुग्रीव, हनुमान, अंगद, मेघनाथ जैसे योद्धा हों। महाभारत में जयद्रथ, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, अर्जुन भीम,नकुल, श्रीकृष्णा,या घटोत्कच जैसे महान योद्धा हो। आज के युग में महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, संभाजी महाराज, महाराजा अग्रसेन, विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य, बाजीराव पेशवा आदि महान योद्धा।
किसी भी युग मेंभारत की इस महान भारती ने अत्याचार के खिलाफ लड़ जाने वाले अनेकों योद्धा दिए हैं।इसमें भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल और अनंत कान्हेरे जैसे हजारों नाम और भी जोड़े जा सकते हैं। वीरों की इस धरती में योद्धाओं का कोई अंत नहीं है। परंतुकहा जाता है न कि हर युग में एक ऐसा योद्धा होता है जिसके आगे बाकी सभी फीके पड़ जाते हैं। त्रेता युग में ऐसे ही योद्धा बनकर श्री राम उभरे थे। [महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा]
आज हम बात करने वाले हैं द्वापर युग के सबसे बड़े महायोद्धा की। ऐसा योद्धा जिसने युद्ध नहीं लड़ा लेकिन फिर भी उसे महाभारत काल में सबसे बड़ा योद्धा माना जाता है। आज हम बात करने वाले हैं बर्बरीक के बारे में। आईए बर्बरीक उर्फ हारे के सहारे खाटू श्याम के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
कौन हैं खाटू श्याम
उत्तर भारत के हरियाणा पंजाब दिल्लीऔर राजस्थान आदि इलाकों में खाटू श्याम के मंदिर और धाम देखने को मिल जाते हैं। खाटू श्याम जिनका नाम बर्बरीकहै, उन्हें हारे का सहारा बोला जाता है। इसका कारण यह है कि उन्हें अपने गुरु विजय सिद्ध सेन से सिद्धि के उपरांत गुरु दक्षिणा के रूप में एक वचन देना पड़ा था। कि वह सदा ही केवल उन्हीं की ओर से युद्ध करेंगे जो हार रहे होंगे अर्थात वे सहारे के रूप में केवल हारे हुए पक्ष की मदद करेंगे। इसलिए उनका नाम हारे का सहारा पड़ा। विजय सिद्ध सेन के अलावा उनकी माता मोरबी भी उनकी गुरु थी। जिन्होंने उन्हें मायावी कलाएं सिखाई थी।
विजय सिद्धि सेन से उन्हें धनुर्विद्याआदि का ज्ञान मिला था। इसके अलावा भगवान श्री कृष्णा भी महाभारत के इस सबसे बड़े योद्धा के गुरुहैं। उन्होंने बर्बरीक को 16 कलाओं में निपुण किया था। इन तीनों गुरुओं की वजह से ही वह 16 कला संपूर्ण होने के साथ-साथ मायावी कलाओं औरअस्त्र-शास्त्र के भी अथाह ज्ञाता थे। इन्हें अनेक नाम से जाना जाता है मोरबी पुत्र, हारे का सहारा, तीन बाण वाले, खाटू वाले बाबा, श्याम, खाटू श्याम, केशव, सांवरा, शीश के दानी, नीले घोड़े वाला, कलयुग के भगवान, लखदातार, खाटू नरेश, मोरछड़ी धारक इत्यादि अनेक नामों से जाना जाता है। [महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा]
पांडवों से बर्बरीक का संबंध
पांडवों से बर्बरीक का एक अटूट संबंध है। हालांकि एक वक्तव्य ऐसा भी है जब महाभारत समाप्त होने के बाद अर्जुन ने बर्बरीक के मुख से अपनी वीरता के किस्से सुनने चाहे, तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी और इसमें सिर्फ अर्जुन ही नहीं अपितु सभी पांडव शामिल थे। लेकिन आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि बर्बरीक कोई और नहीं पांडवों के पौत्र थे। दरअसल हिडिंबा नाम की राक्षसी का विवाह भीम से हुआ।
जिससे उन्हें घटोत्कच नामक एक महावीर पुत्र की प्राप्ति हुई। आगे चलकर घटोत्कच का विवाह मोरबी से हुआ, जिससे बर्बरीक का जन्म हुआ। अतः बर्बरीक कोई और नहीं अपितु भीम के पौत्र थे। इसके अलावा अर्जुन को भी धनुर्विद्या में अपनी प्रेरणा मानते थे।
कैसे बर्बरीक बना हारे का सहारा
घटोत्कच का मोरबी से विवाह के पश्चात उन्हें बर्बरीक की पुत्र के रूप में प्राप्ति हुई। बर्बरीक की माता मोरबी राक्षसी कुल से होने के कारण मायावी शक्तियों की बहुत बड़ी ज्ञानी थी। उन्हें करीब-करीब सभी प्रकार की मायावी शक्तियों का ज्ञान था। बचपन से ही उन्होंने यह ज्ञान बर्बरीक को सीखने की चेष्टा रखी और उन्हें सभी मायावी शक्तियां सिखाई। इसके पश्चात श्री कृष्ण से उन्होंने 16 कलाएं और अन्य दिव्य ज्ञान लिया। श्री कृष्णा भी उनके तीन गुरुओं में से एक गुरु थे। [महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा]
इसके पश्चात ऋषि विजय सिद्ध सेन ने उन्हें युद्ध विद्या सिखाई। अनेक प्रकार की सिद्धियां विजय सिद्ध सेन से प्राप्त करने के पश्चात जब उन्होंने गुरु दक्षिणा की बात की, तो गुरुवर ने गुरु दक्षिणा के रूप में केवल एक वचन मांगा।
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वह वचन यह था कि वह किसी भी सूरत में सिर्फ हारने वाले पक्ष की मदद के लिए ही अपने सिद्धियों का उपयोग करेंगे। उन्होंने उन्हें तीन बाण प्रदान किए जिसमें से पहला बाण लक्ष्य को साधता था। दूसरा बाण उस लक्ष्य को नष्ट कर देता था। तीसरा बाण यह कहते हुए दिया कि तुम्हें इस तीसरे बाण की आवश्यकता कदाचित नहीं पड़ेगी, परंतु यह बाण बाकी दोनों बाणों के कार्य को अकेले करने में सक्षम है। ऐसे ही आगे चलकर सिर्फ हारने वाले पक्ष की मदद करने के वचन की वजह से ही उन्हें मृत्यु का शिकार होना पड़ा। परंतु आज भी बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से हारे का सहारा ही बुलाया जाता है।
महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा अगर लड़ता तो क्या होता ?
क्योंकि बर्बरीक श्री कृष्ण के शिष्य थे, तो श्री कृष्णा उनकी शक्तियों से अच्छी तरह से वाकिफ थे। उन्हें पता था कि बर्बरीक केवल हारने वाले पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेंगे और बर्बरीकके समक्ष कोई भी योद्धा द्वापर युग में विद्यमान नहीं था। उन्हें डर था कि यदि बर्बरीक ने गलत पक्ष चुनकर उसे जीताने का फैसला किया तो न केवल धर्म की हानी होगी अपितु पांडवों और कौरवों दोनों के कुल तक समाप्त हो जाएंगे।
यह बात ध्यान में रखकर ही उन्होंने बर्बरीक की एक परीक्षा लेने का निर्णय किया। उन्होंने बर्बरीक से उसकी शक्तियों का प्रमाण देने हेतु एक बाण में पीपल के पेड़ के सभी पत्तों में छेद करने की बात कही। हालांकि बर्बरीक इस बात को भली भांति जानते थे कि एक पत्ता श्री कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे दबा दिया है। फिर भी उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार करते हुएअपना बाण चलाया और सभी पत्तों को बीच में से भेदते हुए वह बाण श्री कृष्ण के पैरों में जाकर गिरा।
अपना वचन पूर्ण न होने परउन्होंने श्री कृष्ण से जो भी चाहे मांगने को कहा। बदले में श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश मांग लिया। बर्बरीक ने बिना सोचे समझे अपना शीश काटकर श्री कृष्ण को दान में दे दिया। परंतु उससे पहले उन्होंने एक इच्छा जाहिर की जिसके अनुसार उन्होंने कहा था कि वह महाभारत का युद्ध देखना चाहते हैं। इसलिए श्री कृष्ण ने कुछ दिव्य शक्तियों की सहायता से उनके सर को जीवित रखा एवं कुरुक्षेत्र से कुछ दूरी पर एक पहाड़ पर उनके शीश को स्थापित कर दिया।
बर्बरीक ने उस पहाड़ से पूरी महाभारत को अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा और बर्बरीक के स्वाधीनता और स्वच्छ मन को देखते हुए भी श्री कृष्ण ने उन्हें कलयुग में अपने नाम से पुकारे और पूजे जाने का वरदान दिया। उन्होंने वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे ही नाम से जाने जाओगे और कलयुग में सिर्फ तुम्हारी महिमा ही कायम रहेगी।
कहाँ प्रकट हुए थे खाटू श्याम
महाभारत के पश्चात उनके सर को नदी में प्रवाहित कर दिया गया था। इसके पश्चात बर्बरीक को लोग करीब करीब भूल बैठे थे। 17वीं शताब्दी में राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नामक गांव के पास एक घटना घटित हुई, इसके बाद से ही बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से जाना जाने लगा। [महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा]
इस घटना के अनुसार एक गए जिसका नाम राधा था और वह दूध नहीं देती थी। एक दिन वह एक खेतनुमा मैदान में गई और एक स्थान पर पहुंचकर उसके थनों से दूध स्वत ही प्रवाहित हो चला। राजा के कहने पर वहां खुदाई हुई तो पाया गया कि वहां पर एक सिर है जो यह दूध पी रहा था। बाद में इसी जगह पर खाटू श्याम का एक भव्य मंदिर बनाया गया।
जिसके नाम से ही उनका नाम खाटू श्याम पड़ा। माना जाता है कि खाटू श्याम अथवा बर्बरीक का सर जहां पर रखा गया था, जहां से उन्होंने महाभारत देखी वह स्थान पानीपत के समालखा में चुलकाना नामक गांव में था। इसलिए चुलकाना धाम को भी खाटू श्याम का एक प्रमुख धाम माना जाता है। [महाभारत में सबसे बड़ा योद्धा]
निष्कर्ष
दोस्तों खाटू श्याम की महिमा अपार है। शीश के दानी का कोई भी धाम अपने आप में महान है। माना जाता है कि इस दर से कोई भी खाली नहीं जाता उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बीते दिनों में खाटू श्याम में मान्यता रखने वाले लोगों में भी अपार वृद्धि हुई है। भगवान खाटू श्याम हमारे सभी दुख दूर करें और सदैव हमारी सहायता के लिए खड़े मिलते हैं। बाबा के दर पर मांगी हुई मन्नत आज तक अस्वीकार नहीं हुई। हारे का सहारा खाटू श्याम सदैव आप पर भीअपनी कृपा बरसाए।
धन्यवाद
जय खाटू